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चारबाग स्‍टेशनः प्‍लाटफार्म नं० 7–तीन / वीरेन डंगवाल

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प्‍लाटफार्म नं. सात है यह, उत्‍तर रेलवे की सारी उपेक्षित
रेलगाडियों का कटरा
एक आत्‍मीय हिकारत के साथ ‘गदहा लाइन’
नाम दिया है इसे
कुलियों, रेल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों
और चारबाग के उचक्‍के एवं निरीह
दोनों प्रकार के स्‍थाई नागरिकों ने

किन्‍तु रहो हे !
रसज्ञों के हृदय को विचलित कर देने वाली
यह घिसी-पिटी घृणास्‍पद दृश्‍यावली अवांछित है
जबकि उतरा है सुमधुर वसन्‍त
अवध की बच रही घनी अमराइयों में
और दशहरी की सद्यः प्रस्‍फुटित
आम्रमंजरियों की सुगन्‍ध में
घोली जा रहीं
मादक तीव्रगंधा आधुनिकतम कीटनाशी दवाएं
कृषि साधन सहकारी समिति से
कर्ज में लेकर

सो रहो-रहो अवधेश्‍वरी कण्‍टर बजने दो !

वसन्‍त यदि समग्र है
तो ये पुष्‍पवल्लिकाएं उन
कीट-पतंगों के लिए भी
जिनके नाम केवल नकलची वनस्‍पतिशास्‍त्रि‍यों को पता हैं
अथवा उनके देशज संस्‍करण
अध्‍यवसायी भूमिहीन कृषि कार्यकर्ताओं को
थोड़ा, उन वानर यूथों के लिए भी यह वसन्‍त
जिन्‍होंने काफी तंग किया
नागरजनों को कटु हेमंत में
जब किंचित आहार भी एक असीम अनुकम्‍पा था
जहां से भी वह मिले उस की
और नरम गन्‍ने, पके कदलीफलगुच्‍छ अथवा अनान्‍नास का
रसपान करने को आतुर
हाथियों के उन गठे हुए समूहों के लिए भी यह
जिनमें से एकाध को खेद लिया जाना था
बांस की कोंपलों से ढंके उस गहरे खड्ड में
झिलमिलाती लालटेनों और ब्रह्मपुत्र जैसे विस्‍तीर्ण-लहराते
  भटियाली गान गाते
अंधेरे में खेदा लगाने वालों के करूण कंठ स्‍वरों की पृष्‍ठभूमि मेंः
‘ये कहां भेज दिया तूने, हे मां...’

सदा ही अपने तर्कों के प्रतिकूल जाता है यह वसन्‍त
यही उसका जटिल सौन्‍दर्य है
वह सदा हमें समूह से विलग करने वाले
फरेब लालच और पराजयों के कातर
आर्तनाद सो सचेत करता है
और कुछ को उधर ही धकेलता भी है
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