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चारागर क़ौम के नावाक़िफ़े-आज़ार न थे / कांतिमोहन 'सोज़'

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चारागर क़ौम के नावाक़िफ़े-आज़ार न थे ।
लोग ही उनके करिश्मे के परस्तार<ref>माननेवाले</ref> न थे ।।

जो थे सरकश वो तेरी तेग़ के हक़दार न थे ।
उनका मरना ही भला था जो ख़बरदार न थे ।

तू हमारे लिए बुनता रहा ख़ुशबू की क़बा<ref>कुरता, चोगा, लम्बा अंगरखा</ref>
अपनी तकसीर<ref>ग़लती</ref> थी हम उसके तलबगार न थे ।

ऐसे लोगों की हुकूमत से गिला क्या करते
साहिबे-ज़र थे मगर साहिबे-किरदार न थे ।

दिल के टुकड़ों को ये समझाना है अपनी क़िस्मत
दस्ते-क़ातिल भी तो मजबूर थे मुख़्तार<ref>मर्ज़ी के मालिक</ref> न थे ।

अपनी गुदड़ी में छुपाए रहे अनमोल रतन
जौहरी खूब थे हीरों के ख़रीदार न थे ।

हज़रते सोज़ की परवाज़<ref>उड़ान</ref> का क्या पूछते हो
है ग़नीमत कि वो इंसान थे परदार<ref>परिन्दे</ref> न थे ।।

शब्दार्थ
<references/>