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चारा नहीं था कोई ये झूटी दलील थी / ओम प्रकाश नदीम

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चारा नहीं था कोई ये झूटी दलील थी ।
कोशिश नहीं की तुमने अगरचे सबील<ref>उपाय</ref> थी ।

अफ़्सोस तुम मिले थे मुझे ऐसे मोड़ पर,
मेरी हर एक आरज़ू जब खुदकफील<ref>आत्मनिर्भर</ref> थी ।

जिस दिन गए वो, जाग के देखा था मैंने ख़ुद,
उस दिन की रात और दिनों से तवील<ref>लम्बी</ref> थी ।

ऐसा पहाड़ टूट पड़ा, ख़्वाहिशात का,
मिस्मार<ref>ध्वस्त</ref> हो गई जो अना की फ़सील<ref>ऊँची चारदीवारी</ref> थी ।

राह-ए-ख़ुदा पे चलने की हिम्मत नहीं रही,
राह-ए-वफ़ा ही इतनी ज़ियादा तवील थी ।

पत्थर बनी है राह का सीरत<ref>स्वभाव</ref> मेरी ’नदीम’
कल तक ये ज़िन्दगी के लिए संग-ए-मील थी ।

शब्दार्थ
<references/>