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चारि गोट कुण्डलिया / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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अगहनकेँ लागल गहल, भावी गहन अन्हार
दाही-रौदी पाट पर दड़रल गेल बिहार।
दड़रल गेल बिहार दड़ाहिर घ्राड़ी धरिमे,
बीझल पड़ल कोदारि उदास भँडारी घरमे,
छहोछित्त छै छाती मेघो मुँह दुसै छै
पैर तरक गेले छै, हाथो परक हुसै छै।
ठोहि पाड़ि कऽ बाधमे बानय खेत-पथार
ठाढ़ आरि पर कृषक सब पीटय अपन कपार।
पीटय अपन कपार ई साल न लागत,
आयातित अन्नक बल देखि अकाल न भागत,
स्थायी जाधरि करब न आब सिंचाइ व्यवस्था
ताधरि देशक सूतल भग्य कदापि न जागत।
एमहर कृषकक बनल सब बजट भेल अछि फेल,
व्यापारी ओम हर लगा रहल मोंछमे तेल।
लगा रहल अछि तेल नफा पीटब चौगुन्ना,
मुदा कृषक मजदूर पेटमे बान्हथु जुन्ना,
जते गृहस्थ लगौलक घरसँ पूजी’ पाटी
से सबटा बुड़ि गेल, हाथमे बचलै सुन्ना।
खोंसल हाँसू चारमे अपन निपोड़य दाँत
खेतिहर जन बनिहारहुक ऐँठि रहल छै आँत।
ऐंठि रहलछै आँत कतयसँ जुटतै दाना,
रौदी-दाहीकेँ सम्हारि की सकतै थाना,
चित्रगुप्त सचिवालयमे करताह बहाली
नहि तँ के कटतनि एतेक लोकक परवाना।