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चारु पहर राती हो बाबा जूझिहऽ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चारु पहर राती हो बाबा जूझिहऽ।
धरमपुरिया<ref>स्थान विशेष का नाम</ref> सेॅ हो बाबा जूझिहऽ।
छपरिया<ref>छपरा का निवासी</ref> सेॅ हो बाबा जूझिहऽ॥1॥
चारु पहर राती गे बेटी जुझिलौं।
भिनसरबा होयते गे बेटी बिरान भेली।
भुरुकबा<ref>भोर में उगने वाला, एक चमकदार तारा; शुक्रतारा</ref> उगिते गे बेटी, बिरान भेली॥2॥
बेटबा पुतहुआ कैसे हो बाबा राखल।
मोहे हो बाबा फेंकल।
कसतबा<ref>बुहारन</ref> जोगे हो बाबा फेंकल॥3॥
बेटबा पुतहुआ गे बेटी बिपति केरा।
तहुँ बेटी संपति केरा॥4॥
चारु पहर राती हो चाचा जूझिहऽ।
मगहिया सेॅ हो चाचा जूझिहऽ।
पुबरिया<ref>पूरब का निवासी</ref> सेॅ हो चाचा जूझिहऽ॥5॥
चारु पहर राती गे बेटी जुझिलौं।
भिनुसरबा होयते गे बेटी बिरान भेली।
दुपहरिया होयते गे बेटी बिरान भेली॥6॥
बेटवा पुतहुआ कैसे हो चाचा राखल।
मोहे हो चाचा फेंकल।
कसतबा जोगे हो चाचा फेंकल।
धोबियबा मोटे<ref>धोबी का गट्ठर</ref> हो चाचा फेंकल॥8॥
बेटबा पुतहुआ बेटी बिपति केरा।
तहुँ बेटी संपति केरा॥8॥

शब्दार्थ
<references/>