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चारू दिस सूखी हो गेल / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चारू दिस सूखी हो गेल, कमल कुम्हलाय गेल
आरे सुखि गेल गोरी के करेजिया रे की
घर लागय बिजुवन, अंगना अन्हारी राती
आरे पहु परदेश तेजि गेला रे की
जांत तऽ चलबे ने करै, मूसर उठबे ने करै
आरे सासु बैरिनियाँ गरिया पढ़ै रे की
के मोरा हीत होयत, पहु के उदेश लाओत
आरे आब नहि पति जी के देखब रे की
सासू जे मरि जेती, ननदि ससुरारि जेती
आरे तुलसी देखिय, धैरज बान्हब रे की
चुप रहू गोरी तोहें, मन मे सबूर लिअ
आरे आओत तोरो मोन भावन रे की