भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चारों तरफ लहू का समंदर न देखिए / उपेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
चारों तरफ लहू का समंदर न देखिए
हिंसा ने कर दिया है जो मंजर न देखिए
बाहर की ये चमक ये दमक और कुछ नहीं
ये तो लिखा हुआ है कि अंदर न देखिए
ख़ुद को संभालना कोई मुश्किल नहीं यहाँ
चल ही दिए हैं आप तो मुड़कर न देखिए
जख़्मों पे फिर नमक ही छिड़कना है क्या ज़रूर
मिल कर बिछड़ रहे हैं तो हँसकर न देखिए
संभव नहीं है आपका रहना अगर यहाँ
लालच भरी नज़र से मेरा घर न देखिए
टकरा गई नज़र तो सँभल ही न पाओगे
इस शहर में दरीचों के अन्दर न देखिए