चारों धाम नहीं / अजय पाठक

रिश्तों में अब आदर्शों का कोई काम नहीं
वह भी राधा नहीं रही और हम भी श्याम नहीं।
सीतायें बंदी हैं अब तक उसके महलों में
रावण से जाकर टकरायें अब वो राम नहीं।

गोपालों से मिली गोपियाँ रास रचाती है
उन्मादों के इन रिश्तों का कोई नाम नहीं।
पंचाली को जकड़ रखा पापी दुर्योधन ने
अर्जुन का पुरुषत्व दिखाता कोई काम नहीं।

झूठ इबादत, बदी बंदगी धोखा अर्चन है
काबा-काशी इसके आगे चारो धाम नहीं।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.