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चार क़तऐ / जावेद अख़्तर

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कत्थई आँखों वाली इक लड़की
एक ही बात पर बिगड़ती है
तुम मुझे क्यों नहीं मिले पहले
रोज़ ये कह के मुझ से लड़ती है

लाख हों हम में प्यार की बातें
ये लड़ाई हमेशा चलती है
उसके इक दोस्त से मैं जलता हूँ
मेरी इक दोस्त से वो जलती है

पास आकर भी फ़ासले क्यों हैं
राज़ क्या है, समझ में ये आया
उस को भी याद है कोई अब तक
मैं भी तुमको भुला नहीं पाया

हम भी काफ़ी तेज़ थे पहले
वो भी थी अय्यार<ref>चालाक</ref> बहुत
पहले दोनों खेल रहे थे
लेकिन अब है प्यार बहुत

शब्दार्थ
<references/>