Last modified on 9 अगस्त 2019, at 17:50

चार ताँका / इशिकावा ताकुबोकु / उज्ज्वल भट्टाचार्य

1.

मुझे डर है
अपने एक हिस्से से
जिसे मेरी अब कोई परवाह नहीं

2.

बेजान बालू में एक उदासी
उँगलियों के बीच से सरकती है
जब मुट्ठीं बान्ध लेता हूँ

3.

जम्भाई का बहाना, सोने का भान,
आख़िर क्योंकर ऐसा करता हूँ ?
ताकि पता न चले मैं सोच क्या रहा हूँ

4.

चुपचाप जाड़े के दिन आए
जैसे परदेसी घर लौटता है
सोने की ख़ातिर