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चार पदों का गीत हमारा / कुमार रवींद्र
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बाँचो साधो !
चार पदों का
साँसों का यह गीत हमारा
पहले पद में
हँसता हुआ एक बच्चा है
एक गली का घर
उसका आँगन कच्चा है
छाँव नीम की
उसके नीचे
हम जा पाते, काश, दुबारा
दूजे में कनखी का जादू
वृन्दावन है
गाता मन है
साँस-साँस में अपनापन है
धूप-छाँव में
सपनों के किस्से
और नदी का शोख किनारा
तीजे पद में भटकन
साँसों की उलझन है
किसिम की इच्छाएँ हैं
और थकन है
नदी नेह की
जो बहती थी
उसका जल भी होता खारा
झरते पत्ते - ठूँठ वृक्ष हैं
चौथे पद में
सारी ही धरती लगती है
पड़ी विपद में
धुँधले
आसमान में दिखता
हर कोने में ढला सितारा