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चार पुरुष और स्वर्ण युगों पर शोकगीत-2 / विवेक निराला

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हम थे चार पुरुष
आपस में लड़ते-झगड़ते
स्वर्णयुग का हर यूटोपिया
हमको आकर्षित करता था ।
कुत्ते की तरह हाँफते हुए
हम उस तक
किसी भी सूरत में
पहुँच जाना चाहते थे ।

बदहाल, लगभग मनुष्य विरोधी
स्थितियों में
अपने जीवन को झेलते
अपने एक जैसे जीवन को काटते ।

हमने अपने को ही खाकर
भूख मिटाई
हमने अपना लहू चाटकर
प्यास बुझाई
ख़ुद को समिधा मानकर
हमने आहुति दी
तिल-तिल
देह गलाते गए
अन्तस् को जलाते गए ।

हमने तक़लीफों को छूकर
महसूस किया
पीड़ा को सीने में धरकर
समझा है
जो कुछ भी देखा और जाना
जितने अंशो तक
हमने सत्य को पहचाना
उतने तक
वैसा कहने के खतरे उठाए ।

अपने समय को
नपुंसक कहकर
हम किसी स्वर्णयुग की
जालिम कल्पना में तल्लीन थे ।
अपने सीमित और भोंथरे
हथियारों पर
हम बहुत गर्व करते थे ।

हम लड़ाकू थे
एकदम मौलिक
विचारों की लड़ाई में
समान रूप से निपुण
हम चारों
पीठ पीछे वार नहीं करते थे
हम प्रतिपक्ष को
पूरा मौक़ा देते थे,
इसलिए अपने को नैतिक कहना
हमें अधिकार की तरह लगता था ।

हम विचार को
विचार से परास्त करना
चाहते हुए भी
बार-बार ख़ुद हार जाते थे
क्योंकि प्रतिपक्ष
विचारों की लड़ाई को
अपने कूड़ेदान से शुरू करता था
और चाकू पर
लाकर ख़त्म कर देता था ।

दरअसल
मायावी था हमारा शत्रु
वह नए रूप धरता जाता था
और उसकी शिनाख़्त मुश्किल थी ।

अपने सबसे अच्छे समय
के हम लोभी
मरुस्थल में गिरते-पड़ते
कितनी ही आँखों में गड़ते
हर सूर्योदय के बाद
जब हम निकलते
तो यह सोचकर कि लेकर
आएँगे कोई न कोई स्वर्णकाल
या तो मौत हमें वापस
एक साथ मिलने नहीं देगी ।

इस तरह हमने
उन तमाम लोगों को बेवज़ह
डरा दिया था
जे हमें कुछ दिन और
जीवित देखना चाहते थे ।
वे लोग
अपने अच्छे दिनों के
न आने से खीझे हुए
पोलियो के कारण
दोनों पाँव की ताक़त खोए
रोगी की तरह
अपने हाथों में
हवाई चप्पलों के साथ
घिसट रहे थे ।

बेहद छरे हुए खभ्भड़
वे सिर्फ़
इस देश का नागरिक
बने रहने की
जद्दोजहद कर रहे थे ।
वे एक अदद
मतदाता पहचान-पत्र
हासिल करने के लिए
बार-बार फोटो खिंचा रहे थे
परन्तु हर बार उनकी मानवाकृति
बैल में बदल जाती थी ।

वे सब
हमारे ही प्रियजन थे
और हमारा
अवांछित भविष्य हो सकते थे ।

कुछ लोग बिल्कुल चुप थे
जिन्होंने कई बार
नाजुक मौकों पर हमें
आत्महत्या का परामर्श दिया
वे सब आत्म-वध को भी
क्रान्ति मान चुके लोग थे ।

हमसे पहले भी आए थे
सब सच-सच कहने वाले
दुनिया को अपना
शोधा सच बतलाने वाले
दुःख है तो
दुःख का कारण समझाने वाले
समतल धरती को
गोल-गोल दिखलाने वाले ।