चार रूप जिनगी के / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
भोरकोॅ कमलोॅ रं कोमल
गुलाबोॅ रं हँसमुख; लेरू रं चंचल
एक बच्चा-बालू-गोबर-छौरोॅ मिलाबै में लीन
निशाँ में चूर, दुनियाँ सें दूर!
बानरोॅ रं नटखट, खोधरनी रं जिद्दी, लहरनी रं तेज,
एक छौंड़ा-आगनी पानी में, रौदी-बतासोॅ में
कटेल-बनबैरी के, तारोॅ-खजूरी के गाछी लग टौवैतें
गली-कोन्टा में बतियैतें, साथी खोजै में मस्त
सबकुछ भूली केॅ लगाय में गस्त!
चढ़ती दुपहरिया रं उग्र
मातलोॅ हाथी रं मस्त, सिंहोॅ रं सुस्त पट्ठा-
हिरनी रं आँख, फूलोॅ रं देह, नागिन रं केश
कुनलोॅ गोरोॅ बाँह, खैजै में
नमरी शिकारी रं व्यस्त, पियासला रं आतुर
समय के शक्की एकदम अधक्की!
पूस के तेसरोॅ पहरोॅ रं साफ,
भूखलोॅ जोरलोॅ घोड़ा रं साफ,
भूखलोॅ जोरलोॅ घोड़ा रं मनझान,
हरोॅ सें खुललोॅ बरदोॅ रं चूर एक बूढ़ोॅ-
खोंखी सें बेचैन, दुलकी सें परेशान,
पोपलोॅ मुहों सें गुड़ुर-गुड़ुर हुक्का में डुबलोॅ
दुआरी पर बैठलोॅ!