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चार सौ विवाह और दो अन्तिम संस्कार / गिरिराज किराडू
Kavita Kosh से
कैसे देखते होंगे दो शव उन चार सौ विवाह उत्सवों को जिनकी रौनक के बीच से
गुजर कर उन्हें शमशान तक पहुंचाना है। कैसे देखती होंगी पान की दुकानें शवों और
दूल्हों को एक दूसरे के पास से होकर गुजरते हुये।
दोराहों,तिराहों,चौराहों की तरह कुछ ऐसी ही जगहें इस नगर में हैं जिनमें दसों दिशाओं से
आकर खुलता और सिमटता है संसार। उनमें से आठ विवाह और दो से अन्तिम संस्कार की यात्राएं
बीचों बीच बने चबूतरे की ओर बढ़ रही हों तो शव और पान की दुकानें ही कोई भी अचानक
फंस सकता है इस खतरनाक प्रश्न की जकड़ में कि वह किस यात्रा में है।
मातम गुनगुना रहे कवियों के बीच कभी उम्मीद और कभी विलाप की तरह सुनाई देती है तुम्हारी आवाज।