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चालो माजी कोटगेट / नीरज दइया

Kavita Kosh से
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बड़ी गवाड़ बीकानेर माथै एक तांगैवाळो हो जिको हरेक चलतै नै बकारतो- “चालो माजी कोटगेट।” बो काल म्हारै सपनै में आयो। म्हैं बीं नै ओळख लियो कारण कै एक दिन एक रस्तै चालती लुगाई आप री चप्पल काढ़ ली- “रे धबिया, म्हैं कांईं थनै माजी दिखूं?” बो दिठाव ही हो जद पछै म्हैं उण तांगै वाळै नै गौर कर्‌यो कै बो हरेक चलतै नै बकारतो- “चालो माजी कोटगेट।”

सपनो ई क्या चीज हुवै कांईं कांईं नीं दिखाय देवै, बो म्हनै कैयो- “भाई जी, बीड़ी पाओ।” अर घणै सूतम री बात कै म्हैं ई ठाह नीं क्यूं खुद री चप्पल काढ़ ली अर उण नै कैयो कै- “रे धबिया, म्हैं कांईं थनै बीड़ीबाज दिखूं?”

बीं रै गयां पछै म्हैं सपनै मांय विचारतो रैयो कै म्हैं उण री जरा सी फरमाइस माथै इंयां किंयां कैयग्यो। पण अबै कांईं कारी लागै। सपनै में उण पछै म्हैं आसै-पासै दुकानां नै जोवतो खासी आफळ करी कै कदास कोई दुकान लाध जावै। जे दुकान लाध जावै तो म्हैं बीड़ियां रो बंडळ लेय’र दौड़तो जावूं अर उण नै पकड़ा देवूं। इत्तै मांय बो ई तांगै वाळो जाणै कठीनै सूं निकळ’र आयग्यो अर पागल कोटगेट माथै तांगो लिया ऊभो बोलै हो- “चालो माजी कोटगेट।”