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चाल हम सब से चल गया सूरज / शीन काफ़ निज़ाम

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चाल हम सब से चल गया सूरज
कितना आगे निकल गया सूरज

जलते जलते पिघल भी सकता है
जब सुना तो दहल गया सूरज

रोज़ की तरह कल भी आऊंगा
आज भी सब को छल गया सूरज

सर छुपाने को जब जगह न मिली
कितने चेहरों में ढल गया सूरज

एक बदली जो पास से गुज़री
रंग कितने बदल गया सूरज

तह करो ख्वाब शब समेटो अब
फिर सफ़र पर निकल गया सूरज

डर गया शहर के मकानों से
वक़्त से पहले ढल गया सूरज