भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाहता हूँ यह पृथ्वी / नीलोत्पल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे आकाश में
ज़िद्दी परिंदे की तरह उड़ रहा हूँ
जानता हूँ लौट आना है इस दुनिया में
जिसे मैं चाहता हूँ तुम्हें प्यार करते हुए

यहाँ करोड़ां चीज़ों के कसमसाने की आवाज़
उनके टूटने-बिखरने का सिलसिला
बनाता है जगह हमारे बीच
अलग नहीं है तुम्हें प्यार करना
और इस दुनिया में चोट खाकर संभलना
अलग नहीं हैं हमारे सपने, चाहतें और नाराज़गियाँ

तुमसे रूठता हूँ
तब यहीं आपाधापी में
चेहरों को उलझते-मुस्कराते देख
भर उठता हूँ समुद्र की तरह
जैसे तुम्हारे प्यार में

ऐसा भी होता है कि
खि़लाफ़ लगने लगता है सब कुछ
तब मिलती हो तुम
उस अंतिम दरख़्त की तरह
जहाँ हज़ारों चिंचियाती चिड़ियाों से
भर उठती है पृथ्वी

तुम्हें प्यार करते हुए
चाहता हूँ यह पृथ्वी