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चाहता हूँ / नरेश गुर्जर
Kavita Kosh से
चाहता हूँ
छोटे से बच्चे की तरह लेटा रहूं
उस निसंतान स्त्री की गोद में
जो थक चुकी है
मांग कर मन्नतें
चाहता हूँ
कुछ रंग सौंप दूं
उस सांवले रंग-रुप वाली लड़की को
जो आधी उम्र बीत जाने पर भी
अनब्याही हैं
चाहता हूँ
स्नेह से रख दूं हाथ सर पर
और हाथ में रख दूं कुछ सपने
उस बच्ची के
जिसने पिछले दिनों खोया है
अपने पिता को
चाहता हूँ
गले लगा कर खूब रोने दूं
उस युवती को
जिसने अभी-अभी प्यार में
खाया है धोखा
लेकिन जब चाह कर भी
नहीं कर पाता हूँ ऐसा
तो सोचता हूँ
आदमी को
या तो सामाजिक होना चाहिए
या संवेदनशील।