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चाहता है दीप यद्यपि तम भगाना / डी .एम. मिश्र
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चाहता है दीप यद्यपि तम भगाना
रोशनी में आग भी है घर बचाना
मेघ से बरसात ही केवल नहीं हो
जानता है मेघ बिजली भी गिराना
फ़ायदा जितना उठाना हो ,उठा लो
पर , कभी सूरज को आँखें मत दिखाना
दोमुँहे कुछ साँप भी देखें हैं मैंने
बस ज़रा मुश्किल उन्हें पहचान पाना
हर चमकती चीज़ सोना ही नहीं हो
जब मिले धोखा तो मेरे पास आना
घर बनाकर आसमाँ पर कौन रहता
हर बड़ा , छोटा यहीं है आशियाना
कर रहे हैं आप अपना वक़्त ज़ाया
व्यर्थ है अंधों को आईना दिखाना