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चाहत के हर मुकाम पर रूसवाइयाँ मिलीं / देवमणि पांडेय
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चाहत के हर मुकाम पर रूसवाइयाँ मिलीं
अपनों की भीड़ में हमें तनहाइयाँ मिलीं।
इस दौर में ये बात अजूबे से कम नहीं
झूठों की बातचीत में सच्चाइयाँ मिलीं।
कितने दिलों में आज भी जिंदा हैं कुछ रिवाज
पक्के घरों के बीच में अंगनाइयाँ मिलीं।
जितने भी हम करीब गये डूबते गये
आंखों में उसकी झील सी गहराइयाँ मिलीं।
पलकों ने जब सजाया है कोई हसीन ख्वाब
वादी में दिल की गूँजती शहनाइयाँ मिलीं।