भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाहत को आँसुओं के भँवर से बचा लिया / कृष्ण कुमार ‘नाज़’
Kavita Kosh से
चाहत को आँसुओं के भँवर से बचा लिया
अच्छा किया कि आपने मुझको मना लिया
उसने भी करलीं अपनी ख़ताएँ सभी कुबूल
मैंने भी बढ़के उसको गले से लगा लिया
फिर एक और दोस्त बनाया है आपने
फिर एक और आपने दुश्मन बना लिया
जीवन हो जैसे कोई सफ़र धूप-छाँव का
रोया कभी मैं और कभी मुस्करा लिया
अहसान उसको याद दिला तो दिया मगर
खु़द को ही मैंने अपनी नज़र से गिरा लिया
दोनों तुनुकमिज़ाज थे, दोनों अना पसंद
आपस के रखरखाव ने रिश्ता बचा लिया लिया
चेहरों पे जिनके ‘नाज़’ लिखा है मुहब्बतें
ज़हनों पे हैं निशान उन्हीं के सवालिया
</poem>