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चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ,
जोग के प्रयोग में हियौ तो बिलस्यौ रहै ।
कहै रतनाकर सु-अंतर मुखी ह्वै ध्यान,
मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहै ॥
ऐसे करौं लीन आतमा कौं परमात्मा में,
जामैं जड़-चेतन बिलस बिकस्यौ रहै ।
मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि,
सो तौ सब अंतर-निरंतर बस्यौ रहै ॥30॥