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चाहिए मुझको दौलत नहीं / ऋषिपाल धीमान ऋषि

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चाहिए मुझको दौलत नहीं
दिल को फिर भी तो राहत नहीं।

बज़्म में बस मुझे टोकना
ऐ सुख़नवर शराफ़त नहीं।

धर्म के नाम पर खूं बहे
कुछ भी हो ये इबादत नहीं।

लोग आपस में मिलते तो हैं
पर दिलों में महब्बत नहीं।

बस गिला खुद से ही है मुझे
ज़िन्दगी से शिकायत नहीं।

पाठ सच का पढ़ाते हैं वो
जिनके दिल में सदाक़त नहीं।

मौत से भी बुरी है हयात
कहते हो तुम क़यामत नहीं।

दिल मेरे मत परेशान हो
कौन है जिसपे आफ़त नहीं?

सच्चे इंसान को अब 'ऋषि'
बोलने की इजाज़त नहीं।