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चाहिये था कुछ / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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चाहिये था कुछ तो भी तेरी इबादत के लिये!
तूने दे दी एक हसीं मूरत मुहब्बत के लिये!

भर लिया क्या जाने क्या-क्या इस नज़र में आपने,
आपको आँखें मिली थीं एक सूरत के लिये!

इश्क़ में शिद्दत हो पैदा, सान पर आँसू चढ़े,
कर लिये कुछ दोस्त भी पैदा अदावत के लिये!

आँख में शोले नहीं शबनम ही शबनम चाहिये,
इश्क़ पहली शर्त होती है बग़ावत के लिये!

दब गया 'सिन्दूर' बेहद इस जहाँ के क़र्ज़ से,
नाम भर रह जाएगा तेरा वसीयत के लिये!