भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाहे जिसे पुकार ले तू … अगर अकेली है! / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाहे जिसे पुकार ले तू
अगर अकेली है!
संध्या खड़ी मुंडेर पर
पछुवाए स्वर टेर कर
अँधियारे को घेर कर
ये सब लगे अगर परदेशी
आँगन दीप उतार ले तू
      अगर अकेली है!
चाहे जिसे पुकार ले तू
अगर अकेली है!
देख सितारे और गगन,
दुखती-दुखती बहे पवन
घड़ियाँ सरके बँधे चरण
ये भी लगे अगर परदेशी
कल का सपन सँवार ले तू
      अगर अकेली है!
चाहे जिसे पुकार ले तू
अगर अकेली है!
टहनी-टहनी बाँसुरी
आई ऊषा नागरी,
खिली कमल की पाँखुरी
गीत सभी पूरब परिवेशी
अपने समझ पुकार ले तू
      अगर अकेली है!
चाहे जिसे पुकार ले तू
अगर अकेली है!