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चाहो कि होश सर सूँ अपस के बदर करो / वली दक्कनी

चाहो कि होश सर सूँ अपस के बदर करो
यक बार उस परी की गली में गुज़र करो

है कि़स्‍स-ए-दराज़ के सुनने की आरज़ू
उस जुल्‍फ़-ए-ताबदार की तारीफ़ सर करो

बूझो हलाल-ए-चर्ख़ कूँ अबरू-ए-पीर ज़ाल
उसकी भवाँ के ख़म पे अगर टुक नज़र करो

उस गुल के गर विसाल की है दिल में आरज़ू
शबनम नमन तमाम अँखियाँ अपनी तर करो

ऐ दोस्ताँ बनंग हुआ हूँ मैं होश सूँ
पीतम का नाँव ले के मुझे बेख़बर करो

पहुँचा है जिसको हिज्र की सख़्ती सूँ
उस बेख़बर कूँ हाल सूँ मेरे ख़बर करो

हर शे'र सूँ 'वली' के अज़ीजाँ बयाज़ में
मिस्‍तर के ख़त कूँ रिश्‍तए-सल्‍क-ए- गुहर करो