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चाह रहा मन तुम्हें भेज दूँ एक सुहानी शाम / रंजना वर्मा

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मधुर हँसी अधरों की लिख दूँ प्रियवर तेरे नाम।
चाह रहा मन तुझे भेज दूँ एक सुहानी शाम॥

यमुना के तट की वह संध्या
वह कदंब की छाया,
जहाँ बजी थी मुरली
राधा वर ने रास रचाया।

कण कण में है बसी हुई अब तक वह छवि अभिराम।
चाह रहा मन तुझे भेज दूँ एक सुहानी शाम॥

खड़ी अकेली सागर तीरे
देख रही सूर्यास्त,
पढ़ा नहीं भोली आंखों ने
अभी प्रेम का शास्त्र।

दो अक्षर का अमर-ग्रंथ जपता है जग अविराम।
चाह रहा मन तुम्हें भी तुझे भेज दूँ एक सुहानी शाम॥

पलकों में भर स्वप्न मिलन
तुलसी चौरे संझबाती,
धरे देखती देह नेह की
अा भी जा अब साथी।

मन की व्याकुलता मेरी पा जाये कुछ विश्राम।
चाह रहा मन तुझे भेज दूँ एक सुहानी शाम॥