चाह रही / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
जन जीवन के ओ परिष्कार करने वालो!
तेरी जय दूनिया आज मनाना चाह रही
सदियों से जनता ऊबी है
चिन्ता - सागर में डूबी है
सब बदले, पर जीवन ठप है
युग की शासन की खूबी है
जन जन में ओ नव चेतनता भरने वालो!
तेरी जय दूनिया आज मनाना चाह रही
शासन बदला दूनिया बदली
फिर छा न सके दुख की बदली
जिसने अपना बलिदान दिया
उसने न कभी कुछ कीमत ली
भ्रष्टाचारी के अहंकार हरने वालो!
तेरी जय दुनिया आज मनाना चाह रही
संकल्प तुम्हारा अमर रहे
संघर्ष तुम्हारा अमर रहे
तिल-तिल घुल-घुल आखिर दम तक
चलने वाला यह समर रहे
जनता के हित ओ सत्पथ पर मरने वालो!
तेरी जय दूनिया आज मनाना चाह रही
भारत की नैया डगमग हो
तूफान भयंकर पग-पग हो
पर बने साधना ज्योति पुंज
साधक का मग फिर जगमग हो
अन्तर के ओ अज्ञान-तिमिर हरने वालो!
तेरी जय दुनिया आज मनाना चाह रही