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चिंगारी तो भड़काओ / रश्मि प्रभा
Kavita Kosh से
चिंगारी तो भड़काओ
जालियावाला बाग ..
निर्धारित वक़्त से पहले
भगत सिंह को फांसी !
... निजी अस्तित्व की लड़ाई भी
ऐसी ही होती है !
मुख्य द्वार से
अपनों की लिबास में सजे लोग
शब्द बाण चलाते हैं ...
ऐसे में अपनी सोच
कभी कुँए में छलांग लगाती है
कभी लम्बी दीवारों को लांघना चाहती है
कभी अपने दुधमुंहे ख्यालों संग
बच्चे की खातिर
मृत के समान लेट जाती है ...
आजादी - आसान नहीं होती !
गुप्तचर लगाए जाते हैं
फूट डालो शासन करो की नीति
बखूबी अपनाई जाती है
बगावत की लहर
और कूटनीति में
यदि मन क्षणांश को भी
सुखदेव सा भरमाता है
तो कई संभावनाओं के द्वार खोल दिए जाते हैं
.... शहीदों की मजारों पर
मेले लगाकर क्या होगा
यदि एक चिंगारी को आग तुमने नहीं बनाया !