चिंता किस-किस की करिये !
मन तो एक लाख चिंतायें, किस-किसका मुँह भरिये
तन की, धन की या जीवन की चिंता से न उबरिये
या जीवन के बाद मिलेगा जो उसके हित मरिये
शासन-भीति, सुयश-चिंता में फूँक-फूँक पग धरिये
और न कुछ तो सदा अदेखे मरण पाश से डरिये
उतनी खाली होती जाती जितनी गागर भरिये
इस चिंताकुल भाग-दौड़ में कैसे कहाँ ठहरिये !
नहीं बनेगा कुछ, कितना भी बनिये और सँवरिये
सब चिंतायें सौंप उसी को पल में पार उतरिये
चिंता किस-किस की करिये !
मन तो एक लाख चिंतायें, किस-किसका मुँह भरिये