भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिंता तो होगी / सदानंद सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्यक्ति के केन्द्र में
जब जमाने लगे जड़
स्वार्थपरता
सत्ता के केन्द्र में
जब आने लगे
अवसरवादिता
बहसों के केन्द्र से
जब छिटक कर आदमी की चिन्ताएं
काबिज होने लगे बाजार
चिन्ता तो होगी ही

जन जब छूटने लगे
अहं जब जुटने लगे
विध्वंस की गूंज
जब करने लगे भंग सन्नाटा
और नहीं रेंगे उनके कानों पर जरा भी जूँ
चिन्ता तो होगी ही

सभ्यता और संस्कृति
धर्म और दर्शन
जब लगने लगे बेमानी
नैतिकता और मूल्य
जब होने लगे बेमानी
भाषा और विचार
करने लगे मनमानी'
चिंता तो होगी ही

दरअसल
इस जटिल दौर की चिंता के केन्द्र में
होना चाहिए जिसे शामिल
भोगने को निर्वासन की यंत्रणा
हो वहीं अभिशप्त
चिंता तो होगी ही!