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चिंतित था यह सोचकर कब बीतेगी रात / डी. एम. मिश्र

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चिंतित था यह सोचकर कब बीतेगी रात
कौआ चढ़ा मुड़ेर पर होने लगा प्रभात
 
इधर सजीले होठ पर मीठी- मीठी बात
चोरी-चोरी हृदय में उधर करें वो घात

नैन उनींदें बोलते कहाँ बितायी रैन
उलझे- उलझे केश हैं, भींगा- भींगा गात

जब सुधियो में आ बसे वो मेरे मन मीत
बिन ऋतु के, बिनु मेघ के हो जाती बरसात

यूँ तो शस्त्र अनेक हैं करते तीव्र प्रहार
सबसे घातक किन्तु है वाणी का आघात

पढ़ा प्रेम का का पाठ तो बिसर गया सब ज्ञान
मन मन्दिर में आ बसा कल था जो अज्ञात

सुनी कहावत थी कभी देख लिया साक्षात
होनहार बिरवान के होत चीकने पात