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चिंदी चिंदी दिन हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा रात / रंजना वर्मा
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चिंदी चिंदी दिन हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा रात।
चुरा ले गया ख़्वाब सब, विरह व्यथा का वात॥
मधुरिम याद अतीत की, रही हृदय झकझोर
मन को रहें कचोटती, सुनें न कोई बात॥
धड़कन की हर ताल पर, आशा का संगीत
प्राण प्रतीक्षारत लिये, श्वांसों की सौगात॥
युग-सी लम्बी रैन सब, दिवस बहुत बेचैन
समय समीर उठा रहा, पल-पल झंझावात॥
आतुर हो-हो कर भ्रमर, ले कलिका को चूम
सुमन संजोयें ओस कण, नयन करें बरसात॥
चाँद ज़रा पल भर ठहर, सुनता जा सन्देश।
विरहिन व्याकुल हृदय पर, मत कर यों आघात॥
जुगनू तारे चाँदनी, लगें न मन को मीत
विरह निशा तब ही कटे, जब हो मिलन प्रभात॥