भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिंदी चिंदी दिन हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा रात / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिंदी चिंदी दिन हुआ, टुकड़ा-टुकड़ा रात।
चुरा ले गया ख़्वाब सब, विरह व्यथा का वात॥

मधुरिम याद अतीत की, रही हृदय झकझोर
मन को रहें कचोटती, सुनें न कोई बात॥

धड़कन की हर ताल पर, आशा का संगीत
प्राण प्रतीक्षारत लिये, श्वांसों की सौगात॥

युग-सी लम्बी रैन सब, दिवस बहुत बेचैन
समय समीर उठा रहा, पल-पल झंझावात॥

आतुर हो-हो कर भ्रमर, ले कलिका को चूम
सुमन संजोयें ओस कण, नयन करें बरसात॥

चाँद ज़रा पल भर ठहर, सुनता जा सन्देश।
विरहिन व्याकुल हृदय पर, मत कर यों आघात॥

जुगनू तारे चाँदनी, लगें न मन को मीत
विरह निशा तब ही कटे, जब हो मिलन प्रभात॥