चिकोटी चिंतन
शाहदरा से नोएडा की डग्गामार बस में
बगल खड़ी लड़की के धोखे में
इतनी देर से आपको
चिकोटी काट रहे सज्जन की
क्या कोई पहचान है?
करने को ज़्यादा कुछ है नहीं
आजिज आकर पीछे घूमें तो
तो हर कोई दिखता है वहां एक सा
डंडा पकड़े खड़ा चिंतन में लीन ।
ऐतिहासिक स्मारकों में, रेलवे के संडासों में,
कपड़े की दुकानों के ट्रायल केबिनों में
क्या कभी कोई पकड़ा जाता है?
दिखते हैं अलबत्ता हर जगह
हर किसी को शर्मसार करते
भय, अपराधबोध से भरते
उसी मिस्टर इंडिया के कृत्य।
मुझे अगर मिल जाए कोई अदृश्य चोगा
तो सबसे पहले मैं क्या करूंगा?
ऐसे ही लोगों पर नज़र रखूंगा
अकेले जब वे कहीं बैठे होंगे
जाकर सुनाऊंगा वे कृत्य
जिनके बारे में सुनने की बात
उन्होंने सपने में भी न सोची हो।
मेरा ख़्याल है
उनमें कुछ पढ़े-लिखे और ढीठ भी होंगे
जो मुझे मुखौटे की महिमा बताएंगे,
समझाएंगे एक ही इंसान में
जेकिल और हाइड दोनों होने का मर्म,
फिर फर्नांदो पेसोआ के तीन प्रतिरूप
अलमारी से निकालकर मेरे सामने रख देंगे
और तब तक मुस्कुराते रहेंगे
जब तक मेरा अदृश्य चोगा
पसीने से तरबतर न हो जाए।
अदृश्यता तब भी मेरे साथ रही तो
ज्यादा बहस करने की मजबूरी न होगी।
मैं उनसे कहूंगा-
तुम्हें तुम्हारी आज़ादी मुबारक
खुद को तुम चाहे जितने हिस्सों में फाड़ो,
लेकिन जो कुछ तुम कर रहे हो
उसका भोग तो तुम्हें भोगना ही होगा।
मुझे पता है, यह नायकत्व
ज़्यादा समय मेरे साथ नहीं रहेगा।
अदृश्यता एक दिन
मेरी भी चेतना, मेरे भी ईमान से खेलेगी।
पांव के नीचे से ले ही उड़ेगी वह ज़मीन
जहां खड़े होकर हर गलती के बाद
मैं अपने किए पर पछताता हूं।
सिर्फ फ़िल्मों की चीज़ है
अदृश्यता की ताकत पाकर भी
बेचारगी में लौट जाने वाला मिस्टर इंडिया।
असलियत में तो यह वही है
जो इतनी देर से चिकोटी काटता हुआ
आपके पीछे खड़ा चिंतन कर रहा है।