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चिट्ठी / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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आदरणीय महोदय
आशा है कि आपके यहाँ तो
सब कुशल-मंगल होगा
हम भी यहाँ नरक में
सब खुशी से हैं
आगे समाचार यह है
कि जिस पार्क में
हम सैर करते थे
जिसमें रामलीला देखते थे
उसमें स्थानीय नेता ने
झुग्गियाँ डलवा दी हैं
जिन पटरियों पर
हम पैदल चलते थे
उन पर पुलिस ने
गुमटियाँ लगवा दी हैं
हर मोड़, हर कोने पर
रिक्शा की,
आवारा कुत्तों की भरमार है
दुकानदारों ने कई-कई फुट
पटरी व सड़क घेर ली है
सरमायेदारों ने
कई-कई मंजिल मकान बना लिए हैं
उन पर टॉवर लगा दिये हैं
हमारे कानों में,
हमारे दिमाग में,
मोबाइल की घंटियाँ बजती रहती हैं
हमारे दिमाग में लोग बाते करते रहते हैं
नई खोजों के अनुसार
रेडिएशन से
हम सबको कैंसर होने वाला है
सरकारी संपत्ति की
चारों तरफ लूट है
सबको आपने दी खुली छूट है
घर से निकलने में जाम है
लौटकर आने में जाम है
हर पल शोर-शराबा
चारों ओर धूल, धुआँ, धुक्कड़
कोई भी बहरा नहीं होता
कोई भी अस्थमा का मरीज नहीं
सब प्रदूषण के चलते
और फल-फूल रहे हैं
अब उन्हें अंतरात्मा की
आवाज सुनाई नहीं देती
फिर भी हम चुप रहते हैं
अन्याय सहते हैं
सुना है अन्याय सहना
अन्याय करने से ज्यादा पाप है
फिर भी चुप रहते हैं
अन्याय सहते हैं
यही नहीं
धन्यवाद भी देते हैं
सड़कें खुदवाकर
उन्हें दोबारा ना बनवाने का
स्ट्रीट लाइट के खंभे लगाकर
उन पर बल्ब ना लगवाने का
पानी की लाइन डलवाकर
उसमें पानी न छुड़वाने का
बार-बार बिजली कट जाने का
आप कितने धन्य हैं
हमारा कितना भला सोचते हैं
बिजली नहीं होगी
पानी नहीं होगा
तो बिल किस चीज का आयेगा
बढ़ी हुई दरें हमारा क्या कर लेंगी?
हम धन्यवाद देते हैं
धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगवाने का
कितना फायदा
सुबह अलार्म नहीं लगाना पड़ता
घर बैठे ही धार्मिक हो जाते हैं
हम मूर्ख फिर भी
शिकायत करते रहते हैं अनिद्रा की
बड़े नास्तिक हैं हम
हर काम में नुकसान देखते हैं
अभी तक हमने अपनी नजर
अपनी सोच को नहीं बदला
आपने तो लाख कोशिश कर ली
पर हम नाली के कीड़े
गंदी नाली से घबराते हैं
हम कोई साफ पानी की मछली हैं
हम कोई विदेशी नस्ल के कुत्ते हैं
कि शैंपू से नहायेंगे
आयातित भोजन खायेंगे
स्कोडा, बी.एम.डब्ल्यू में घूमने जाएँगे
कभी-कभी
हम अपनी औकात भूल जाते हैं
पाताल में बैठे-बैठे
आसमान की ओर हाथ उठाते हैं
क्यों कभी-कभी
हमें पागलपन का दौरा पड़ता है
हम अचानक
चाँद पर थूकने लगते हैं
अचानक बड़बड़ाने लगते हैं
जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं
मचलने लगते हैं
हम भी राजपथ जाएँगे
हम अपने अंदर के बच्चे को
कैसे बहलाएँ?
कैसे चुप कराएँ
कैसे बतलायें
कि जनपथ
राजपथ से जाकर नहीं मिलता
कि स्वर्ग का फूल
नरक में नहीं खिलता
नरक की बदबू व गर्म हवाओं का
स्वर्ग की खुशबू और आराम को सलाम
आपका आज्ञाकारी
इस तंत्र का गण
एक सामान्य से कमतर
गरीबी की रेखा के
नीचे से भी नीचे का
एक जन।