भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिड़कली अर रूंख / ॠतुप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बिजळी रै
खंभै माथै
चिडक़ली
घास फूस भेळा कर’र
बणायौ आपरौ आलणौ

रूंख निरखै
मुळकै अर सोचै
कै चिडक़ली
बावळी हुयगी दीसै

पण
अेक दिन
कटतो-बढतौ
अर आंसू टळकांवतौ रूंख
निरखै हो
चिडक़ली रै बचियां नै
जिका
भरै हा उडारी
आभै में
च्यारू चफेर।