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चिड़कली रा तीन सुवाल (3) / अशोक परिहार 'उदय'
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जिण छातां में
होंवता बरंगा-सैथीर
उणां में होंवता कदैई
म्हारा रैन-बसेरा
बां इज छातां में
होग्यो कब्जो
चीकणीं टाईलां रो
म्हे पंछीड़ा फिरां
डबकता अब
थूं तो भाई
खुद री ई सोची
म्हारी थांरै भेजै
क्यूं नीं आई?