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चिड़ियाँ जागी कमल खिला / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
चिड़ियाँ जागी कमल खिला, दिनमान निकलनेवाला है।
सुबह सवेरे तेरा दर्शन, गरम चाय का प्याला है।
बेचारा दिल ख़ूब समझता, क्या करना, क्या ना करना,
जो सोये हैं, वे खोये हैं, जागा क़िस्मतवाला है।
निज पहचान की ख़्वाहिश करना, माना अच्छी बात तो है,
जागा तभी सवेरा होता, यही कहावत आला है।
जीवन की आपा-धापी में, भूल न जाना अपने को,
रिश्तों की बुनियाद हिला दी, दाल में ही कुछ काला है।
स्नेह और विश्वास के धागों में मज़बूती मिले सदा,
नहीं तो एक दिन अपनापन पर लग जाएगा ताला है।
साथ चलेंगे, साथ बढ़ेंगे, जीवन की राहें सुलझे,
लेगा वरना तकरार जनम, जीवन झंझट की माला है।
अवसर कब किसको मिलता है, उसे तो बनाना पड़ता है,
दूर अँधेरा तब होता जब, पड़ता ‘प्रभात’ से पाला है।