भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया आई / सरस्वती कुमार दीपक
Kavita Kosh से
चिड़िया आई, तिनके लाई,
उड़ी फुर्र से, फिर से आई।
चिड़ा चिड़चिड़ा, चिड़िया भोली,
चूँ-चूँ-चूँ चिड़िया की बोली,
बोली, जैसे शरबत घोली,
सुन-सुन मन की बगिया डोली,
चिड़िया रानी, सबको भाई!
तिनके तोड़े, तिनके जोड़े,
ऊपर खींचे, नीचे मोड़े,
चिड़ा-चिड़ी के खेल निगोड़े,
काम अधूरे कहीं न छोड़े,
कितनी प्यारी बात सिखाई!
अपना घर, हम आप बनाएँ,
तिनका-तिनका जोड़ सजाएँ,
नहीं आँधियों से घबराएँ,
अपने घर बैठे, मुसकाएँ,
प्यार भरी हम लड़ें लड़ाई!