चिड़िया आरो तिनका / शिवनारायण / अमरेन्द्र
बोॅर गाछ जेकरोॅ कि
खूब उच्चोॅ फुलँग्गी पर
चहक मारी चिड़िया एक
गाबै छै गीत
मुक्ति आ प्रेम के।
फुलँग्गी पर
शांत बैठली चिड़िया
निरयासै धरती दिश
सृजन के सोचोॅ में
एक-एक तिनका केॅ
धरती सें ऊपर बटोरी केॅ लानै छै
तिनकै सें फेनू बनावै छै
अपना लेॅ उठो हौ घोॅर
जैमें अकेला में
रखेॅ सकेॅ सृजन के बीया।
फुनगी सें फुनगी फुदकतेॅ ऊ चिड़ियाँ
धरती के तिनका-तिनका पर
राखै छै आँख
कि कोय्यो ठो तिनका
नै छूटी जाय ओकरा सें
आखिर तेॅ वहा सब तिनका सें
अपनोॅ ऊ दुनियाँ रचावै छै
रक्षा-सुरक्षा-विश्वासोॅ रोॅ दुनियाँ।
गाछोॅ के फुलंग्गी पर
कूदतेॅ आ फानतेॅ चिड़ैयाँ
फेरै छै चारो दिश चौकन्ना ठो आँख
कि जहाँ कहौं पावेॅ
उपेक्षित, तिरिष्कृत ठो तिनका
ओकरा वैं बड्डी सनेहोॅ सें
चोचोॅ में दाबी दुलरावै छै
सहलावै आरो सँवारै छै
फेनू
एक लब्बोॅ ठो दुनियाँ केॅ रचै में
ओकरोॅ अस्तित्व के गौरव गढ़ै छै
आखिर तिनकै के
मजबूतोॅ मेलोॅ सें
होवो तेॅ करे छै चिड़िया रोॅ रक्षा
आरो तेॅ तिनकौ केॅ
चिड़िया के नेह सें
बुझाबै छै अपनोॅ सम्मान
दोनों, इक दूसरा केॅ
देतें रहै छै ई ज्ञान
कि दोनों छै अर्थवान।
आमजनोॅ के दुनियाँ
हेन्है केॅ इक दूसरा केरोॅ सहयोगोॅ सें
बनतौ-सँवरतौ छै।