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चिड़िया और चिरौटे / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
घर-मकान में
क्या बदला है
गौरैया रूठ गई
भाँप रहे
बदले मौसम को
चिड़िया और चिरौटे
झाँक रहे
रोशनदानों से
कभी गेट पर बैठे
सोच रहे
अपने सपनों की
पैंजनिया टूट गई
शायद पेट से
भारी चिड़िया
नीड़ बुने, पर कैसे
ओट नहीं
कोई छोड़ी है
घर पत्थर के ऐसे
चुआ डाल से होगा
अंडा
किस्मत ही फूट गई