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चिड़िया करती परिक्रमा / पारुल पुखराज
Kavita Kosh से
चिड़िया
करती परिक्रमा
धूप की
नहीं दिखती
टटोलने पर भी
मिलती नहीं
देह
अपनी
निगल गया
समग्र
घूँट-घूँट
देखने को
मेरे
देखने वाला