चिड़िया की देह की झुरझुरी / लीलाधर मंडलोई
इस नियोजन में बहुत दूर हूं
चीजों को नजदीक लाने का भ्रम पाले
वहॉं उजाला कम है
पेड़ दीखता है पेड़ प्रतिबिंब-सा हिलता
हो सकने वाले अद्भुत जीवन से जुदा
और पेड़ पर बैठी चिडिया
होकर भी नहीं होती
यहां तक नहीं सुन सकता कोई उसका स्वर
असहमत हुआ और खीजा
इस व्याकरण पर मुझे कोफ्त हुई
आतुरता इतनी कि बदल दूं यह नियोजन
इसके पूर्व कि कुछ कर पाता उद्विग्नता में
कोई आवाज आई भीतर से
और यह मशीन की तो बिल्कुल नहीं
कुछ भीतर था जो बोल उठा
चीजों का स्थान अपने क्रम में
होता है साफ और समीप
जब दूर का दृश्य होता है कहीं
चलते रहने पर आता है नजदीक
यात्रा सिर्फ मनुष्य को नहीं
करनी होती है तय मशीन को तक
व्याकरण के विरूद्ध जाना
उस सबका निषेध है जिससे
दूर से समीप पहुंचा जा सके
पहुंचने के आसान रास्ते को त्याग
मैंने दूर का जीवन देखा
कि पास के जीवन तक पहुंचूं
यह अब दृश्य नहीं था दूर का
आत्मा में हिलता समूचा पेड़ था
चिडिया की देह की झुरझुरी तक रिकार्ड होता