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चिड़िया के गीत की धुन / दिनेश जुगरान
Kavita Kosh से
हड्डियों के अन्दर
गूंजती है
चिड़िया के गीत की धुन
अँगुलियों से उसे
स्पर्श नहीं कर सकता
हल्की बारिश में
समुद्र की लहरों का शोर
चीखता है पेट के अन्दर
कुछ खौफनाक साये
दीवारों की ओर किये पीठ
खड़े हैं
पत्थरों की आकृति मिलती है
पिछली रात के सपनों में देखे
डरावने चेहरों से
एक बारीक आवाज़
लगती किसी बच्चे सी
चाकू की तरह छीलती
मेरी खाल को
सूखा तालाब
आगोश में लिए
अपने पत्थरों को
अपनी पसलियों तक
अकेला
चीखता हूँ मैं
चिड़िया की धुन
जाने किस प्रतीक्षा में है?