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चिड़िया नहीं हूँ मैं / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
चिडिय़ा नहीं हूँ मैं
कि आएगा कोई आखेटक
बिछा देगा जाल
और फँस जाऊँगी मैं ।
धरती नहीं हूँ मैं कि
दुनिया भर के अवसाद
तकलीफ़ें समाकर अपने भीतर
लहराती रहूँगी सदा ।
आसमान नहीं हूँ मैं
कि सिर्फ़ देखती रहूँ दूर से
सब कुछ होते हुए
कर न सकूँ कुछ भी ।
डरो नहीं, आग भी नहीं हूँ मैं
कि लगाओगे हाथ
और जल जाओगे तुम ।
नेह की एक बूँद हूँ
जो नेह से पिघल जाती है
बादल बनकर बरस जाती है
पूरी धरती पर, समंदर पर
दरख़्तों पर
कायनात के इस छोर से
उस छोर तक
नेह ही नेह...