भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
भोली-भाली चिड़िया,
देखी-भाली चिड़िया।
दो पर वाली चिड़िया,
बड़ी निराली चिड़िया।
चूँ-चूँ करती चिड़िया,
मुझसे डरती चिड़िया,
नहीं ठहरती चिड़िया,
फुर-फुर उड़ती चिड़िया।
दाना खाती चिड़िया,
तिनके लाती चिड़िया।
नीड़ बनाती चिड़िया,
मुझको भाती चिड़िया।
[चम्पक, जुलाई (द्वितीय) 1974]