भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिड़ी अर चूजा / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरै घर रै सामणै
बिजळी रै खंबै माथै
आलणौ बणाय' र
रैवै
अेक चिड़ी आपरै
चूजां साथै

जकी सूरज उगण सूं
पैली
उठ'र
उडज्यै असमान में
अर
निजर राखै
धरती माथै

चुग्गौ खाय'र
चुग्गौ लेय'र आवै
आपरै चूजां सारू

जिका आंख्यां मीच्यां
चूंच खोल्यां
अर पांख फैलायां
बैठ्या करै
आपरी मा री अडीक।