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चिड़ी के हैं बादशाह / कुमार रवींद्र

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अजगर की चाकरी
      पंछी का काम
अंधी इस बस्ती का मालिक है राम
 
आगे है खाई
है पीछे दीवाल
सूरज के माथे पर
ठुकी हुई नाल
 
कौन किसे बूझे - हैं अँधियारे आम
 
जंगल हैं महलों के
उलटे आकाश
रातों के उत्सव में
शामिल हैं ख़ास
 
चिड़ी के हैं बादशाह - हुक़्म के ग़ुलाम
 
छोटे गलियारे हैं
लंबी है भीड़
उठती मीनारें हैं
टूट रहे नीड़
 
इस घर के बाशिंदे बाँट रहे शाम