भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चितकबरे घोड़े के लिए कविता / बद्रीनारायण
Kavita Kosh से
सच बोलना चितकबरे
नाध से, चाबुक से, एड़ी से सच बोलना
सवारी से तो ज़रूर सच बोलना
जई से, खल्ली से सच-सच बोलना
सच सुने कई दिन हो गए
सच देखे कई दिन हो गए।