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चित्त करे प्रभु का चिन्तन नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग परज-ताल कहरवा)

 चित्त करे प्रभु का चिन्तन नित, करे सदा मन प्रभु-संकल्प।
 बुद्धि विचार करे नित प्रभुका, करे न किंञ्चित्‌‌ अन्य विकल्प॥
 रहे सदा जीवन प्रभुका ही, प्रभुकी सेवामें नित लीन।
 प्रभुकी शुद्ध प्रपात्ति रहे नित, भय-चिन्ता-ममत्व-मद-हीन॥
 प्रति प्राणी-प्रत्येक स्थलमें प्रतिपल दीखें श्रीभगवान।
 रहे सभीके हित-सुखका ही सहज सदा ही अनुसंधान॥
 जगके प्रति परिवर्तनमें हो प्रभुकी लीलाका शुभ भान।
 सब ही भले-बुरे शदोंमें सदा सुन पड़े प्रभु-गुण-गान॥
 सुख-दुःखादि सभी द्वन्द्वोंमें हो प्रभुका पावन संस्पर्श।
 मिटें हर्ष-‌उद्वेग सभी, हो प्रभु-संनिधिका नित्य प्रहर्ष॥
 यन्त्री प्रभुके कर-कमलोंका बना रहूँ मैं यन्त्र अनन्य।
 प्रभु-लीलाका सहज क्षेत्र बन, हो जाये यह जीवन धन्य॥